bhaktambar pathshalaseeders: 1
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bhaktambar pathshala (Size: 1.38 GB)
DescriptionJain guys learn bhaktambar strotras by Saint_Kshu_DhyanSagar_Ji ................................. enjoy ............................... seed.................................... like my torrent Acharya Giving Details For eg................ ✿ भक्तामर स्तोत्र के 1st और 2nd शलोक की मार्मिक और अध्यात्मिक explanation !! ✿ भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं >>> देव लोगो की भक्ति और श्रद्धावश झुके हुए मुकुटो की मणियो की कान्ति को जिसने प्रकाशमान किया है, आप कह सकते है मणियो में तो खुद ही प्रकाश होता है तो कोई प्रकाशमान वस्तु को कैसे प्रकाशित कर सकता है तो भगवान् के चरण के अंगूठे का नख बहुत निर्मल [दर्पण सामान] होते है और भक्त देवो की मुकुटो की मणियो का प्रकाश भगवान् के उन निर्मल अंगूठे के नख से Reflect होकर increase हो जाता है और ज्यादा प्रकाश होने लगता है, यहाँ पर देव लोगो का भगवान् के सामने झुक जाना भगवान् के 'सर्वज्ञ' [संसार का समस्त पदार्थ, भुत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान] होने का प्रतिक है, जब आदिनाथ भगवान्, मुनि बनकर तपस्या आदि कर रहे थे तो उनके पूर्व कर्म का उदय होने के कारन उनको 13 महीने और 8 दिन तक आहार नहीं मिला तब कोई देव आदि नहीं आया लेकिन केवलज्ञान होने से 100-100 इंद्र [e.g. Human community को lead करने वाले चक्रवर्ती - Human community के इन्द्र हुए] भगवान् के चरणों में झुक गए..... दलित-पाप-तमो-वितानम् >>> जिन्होंने पाप रूपी अंधकार के फैलाव को नष्ट किया है, तो जिन्होंने चार घातिया कर्म रूपी पर्वतो को चूर चूर कर डाला, और पाप रूपी अन्धकार को कौन नष्ट करता है ? रागी, मोहि या वीतरागी जीव...तो वीतरागी भगवान् ने ही इन चारो कर्मो के फैलाव को नष्ट किया तो ये वीतरागता का प्रतिक हुआ | वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्...जिन-पाद-युगं >>> जिन्होंने चार धतिया कर्मो का नाश होने से जो सर्वज्ञ और वीतरागी है ऐसे जिनेन्द्र भगवान् हम सबका आलंबन मतलब सहारा है....संसार रूपी समुद्र में डूबने वाले और संसार में गिरते हम मनुष्यों के लिए....अब सहारा कैसे है ? तो कहते है जिनेन्द्र देव का चरण...तो चरण सहारा कैसे हुए, चरण आचरण के प्रतिक होते है, कभी आपने सुना किसी ने कहा हो भगवान् मैं आपके आँखों को नमस्कार करता हूँ, या मैं आपके सर को नमस्कार करता हों, या हाथो के नमस्कार करता हूँ, नहीं..सिर्फ कहा जाता है की भगवान् आपके चरणों को नमस्कार है क्योकि चरण आचरण मतलब चारित्र का प्रतिक होता है आचरण मतलब जिसमे गुण हो वही पूज्य है, सिर्फ नाम से पूज्य नहीं होता व्यक्ति सिर्फ उसमे गुण होना चाहिए तभी तो सम्मान और पूज्य योग्य है | और भगवान् के चरण में दो है, एक नहीं मतलब जिसने निश्चय चारित्र और व्यवहार चारित्र रूपी चरण को पकड़ा मतलब जीवन में व्यवहार और निश्चय चारित्र को धारण किया, आचरण में लाया, क्योकि चारित्र धारण करने वाले की दुर्गति नही होते जबकि चारित्र ना धारण करने वाले की दुर्गति हो सकती है, उनके लिए भगवान् सहारा बने.... तो ये भगवान् की हितोपदेशीता को दिखता है | सम्यक्प्रणम्य >>> ये उपर दिए गए तीन पहरों से पता लगता है की तीर्थंकर भगवान् में तीन विशिष्ट गुण जरुर होते है उनका सर्वज्ञ मतलब केवलज्ञानी होने, वीतरागी होना और हितोपदेसी होना, तो अब कहते है ऐसे गुणों से विभूषित इस युग में आदि में हुए भगवान् आदिनाथ को सम्यक प्रणाम करता हूँ, सम्यक प्रणाम कैसे किया जाता है तो कहते है मन को एकाग्र [focused] करके, वचन से प्रणाम या नमोस्तु ऐसा बोलकर और काया से हाथो को सीप या अधखुली गुलाब के सामान बनाकर तीन शिरोनती देकर [काय से नमस्कार करने की विधि आप किसी बुक से देख सकते है] और भावो से आदिनाथ स्वामी को सम्यक प्रणाम किया गया है | यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै । स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् उन प्रथम जिनेन्द्र भगवान् की मैं भी स्तुति करूँगा, मतलब अभी आचार्य श्री बोलते है करूँगा, अभी शुरू की नहीं की,और वे भगवान् कैसे है तो कहते है.... जिसको सम्पूर्ण वांगमय के ज्ञान होने से [मर्म का ज्ञान] उत्पन्न हुई बुद्धि की निपुणता/बुद्धिमानी/कुशल [छंद, व्याकरण और अलंकार - ये मतलब वांगमय शब्द का आदिपुराण में आया है] से, ऐसे सुरलोक के नाथ मतलब इन्द्र हुए, क्योकि जिनेन्द्र भगवान् तो तीनोलोक के नाथ है, तो ऐसे देव लोक के इन्द्रो ने आकर भगवान् की स्तुति की थी, वे कैसे स्तोत्रे थे तो कहते है तीनो जगत के चित्त को प्रिय लगने वाले मतलब तीनो जगत को सुन्दर लगते वाले महान और मनोहर स्तोत्र से स्तुति की थी...तो मैं भी अब उन प्रथम जिनेन्द्र की स्तुति करूँगा | कीर्तन - जय जय आदिश्वर स्वामी | जय जय आदिश्वर स्वामी | जय जय आदिश्वर स्वामी [जब आपको गुस्सा आये और अगर इस कीर्तन को एक निश्चित लय में पढ़ा जाए तो आपका गुस्सा पर आपको control हो सकता है ] ---------------------------------------------------------------------- ►►►SOURCE --- ये explanation क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी मुनिराज के भक्तामर शिविर के प्रवचनों के आधार से सुनकर मैंने अपने शब्दको में लिखा है – Nipun Jain -Admin और ये शिविर की Recorded mp3 series www.jinvaani.org website पर उपलबब्ध जिसको आप डाउनलोड कर सकते है और डेली एक सुनकर भक्तामर का शुद्ध उचारण और अर्थ सिख सकते है exact link है - http://library.jain.org/1.Pravachan/Saint_Kshu_DhyanSagar_Ji/Stotra/BhaktamarStotra/ ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse! thank You. Sharing Widget |